बंधुत्व,जाति तथा वर्ग-याद रखने योग्य बाते
- महाभारत की मुख्य कथा का संबंध रो परिवारों के बीच हुआ युद्ध है। इस एम के कुछ भाग विभिन्न सामाजिक समुदायों के आधार व्यवहार के मानदय करते हैं।
- पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उसके संसाधनों पर अधिकार जमा सकते थे। राजाओं के संदर्भ में राजसिंहासन भी शामिल था।
- पितृवरा को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण होते थे। इस व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था। पैतृक संसाधनों पर उनका कोई अधिकार नहीं था।
- धर्मूं और धर्मशाओं में आठ प्रकार के पियाहाँ की स्वीकृति दी गई है। इनमें से पहले पार ‘उत्तम’ माने जाते थे, जबकि शेष को निदित माना गया।
- प्रापेक गोत्र एक वैदिक अपि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य उस ऋषि के वंशज माने जाते थे।
- सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था सातवाहन राजाओं में सिंहासन का उत्तराधिकार प्राय: पितृवशिक होता था।
- धर्मसूमो और धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया गया था जो वर्ग आधारित थी। इसके अनुसार समाज में चार वर्ग अथवा वर्ण थे। इस व्यवस्था में ब्राह्मणों को पहला दर्जा प्राप्त था। शूद्रों को सबसे निचले स्वर पर रखा गया था।
- रानों के अनुसार केवल क्षत्रिय हो राजा हो सकते थे परतु कई महत्त्वपूर्ण राजवंरों की उत्पति अन्य वर्णों से भी हुई थी।
- समाज का वर्गीकरण शास्त्रों में प्रयुक्त शब्द जाति के आधार पर भी किया गया था। ब्राह्मणीय सिद्धांत में वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी परंतु वर्गों की संख्या जहाँ मात्र चार थी, वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी।
- एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से जुड़ी जातियों को कभी-कभी श्रेणियों (गिल्ड्स) में भी संगठित किया जाता था। श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी।
- ब्राह्मण ने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर सामाजिक विषमता को और अधिक जटिल बना दिया।
- इतिहासकार किसी ग्रंथ का विश्लेषण करते समय अनेक पहलुओं पर विचार करते हैं; जैसे-भाषज्ञ, रचनाकाल, विषय-वस्तु. लेखक तथा श्रोता आदि।
- महाभारत नामक महाकाव्य कई भाषाओं में मिलता है परंतु इसकी मूल भाषा संस्कृत है। इस ग्रंथ में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है।