Geography Class 11th Chapter 3 | पृथ्वी की आतंरिक संरचना | Part 2 | Internal Organ of earth

कक्षा 11 की भूगोल की पुस्तक भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत का अध्याय 3 “पृथ्वी और उसकी आन्तरिक संरचना” का यह दूसरा भाग है। इस भाग में हम पृथ्वी के आन्तरिक भागों के बारे में तथा ज्वालामुखी के बारे में पढेंगे।

इस पार्ट में आप पृथ्वी की आतंरिक भागों (भूपर्पटी,मेंटल और क्रोड) के बारे में और साथ ही ज्वालामुखी और उनके प्रकारों के बारें में भी बारे में भी विस्तार से जानेंगे ।

नोट्स

पृथ्वी और उसके आन्तरिक भाग : 1. भूपर्पटी 2. मेंटल 3. क्रोड़

भूपर्पटी (The Crust)

  • गहराई : 5-100 km
  • भंगुर
  • घनत्व : 3 ग्राम/सेमी3
  • घनत्व (महासागरों के नीचे) : 2.7 ग्राम/सेमी3

    मेंटल (The Mental)

  • गहराई : मोहो असंतात्य से 2900km तक
  • उपरी भाग दुर्बलतामंडल Asthenosphere
  • Astheno : दुर्बल
  • घनत्व : 3.4 ग्राम/सेमी3
  • अवस्था : ठोस
  • क्रोड (The Core)

  • गहराई : 2900km से केंद्र तक
  • बाहय क्रोड : तरल
  • आन्तरिक क्रोड : ठोस
  • मेंटल व क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व : 5 ग्राम/सेमी3
  • केंद्र में गहराई तक का घनत्व : 13 ग्राम/सेमी3
  • इसे निफे नाम से भी जाना जाता है।
  • ज्वालामुखी: तथा उनके प्रकार

    ज्वालामुखी वह स्थान है जहाँ से निकलकर गैसें, राख और तरल चट्टानी पदार्थ, लावा पृथ्वी के धरातल तक पहुँचता है।

    वह पदार्थ जो धरातल पर पहुचंता है, उसमें लावा प्रवाह, लावा के जमे हुए टुकड़ों का मलवा (ज्वलखंडाश्मी), ज्वालामुखी बम, राख, धूलकण व गैसें जैसे नाइट्रोजन यौगिक, सल्फर यौगिक और कुछ मात्रा में क्लोरीन, हाइड्रोजन व आर्गन शामिल होते हैं।

    कुछ प्रमुख ज्वालामुखी इस प्रकार हैं

    1. शील्ड ज्वालामुखी (Shield Valcanoes) – ये ज्वालामुखी मुख्यत: बेसाल्ट से बने होते है। उदगार के समय बहुत तरल होते हैं। इसलिए इनमें तीव्र ढाल नहीं होता। कम विस्फोटक होते हैं। लावा फव्वारे के रूप में बहार आता है। निकास पर शंकु बनता है, जो सिन्डर शंकु के के रूप में विकसित होता है।
    2. मिश्रित ज्वालामुखी (Compostie Valcanoes) – बेसाल्ट की अपेक्षा अधिक ठंडा और गाढ़ा लावा निकलता है। भीषण विस्फोटक होते हैं। लावा के साथ ज्वलखंडाश्मी पदार्थ और राख भी धरातल पर पहुँचते हैं। यह पदार्थ निकास नाली के आस-पास परतों के रूप में जमा हो जाते हैं जिनके जमाव से मिश्रित ज्वालामुखी के रूप में दिखते हैं।
    3. कुंड ज्वालामुखी (Caldera) – सबसे अधिक विस्फोटक। आमतौर पर ये इतने विस्फोटक होते हिं कि जब इनमें विस्फोट होता है तब वे ऊँचा ढांचा बनाने के बजाय स्वयं नीचे धँस जाते हैं। धंसे हुए विध्वंस गर्त ही ज्वालामुखी कुंड कहलाते हैं।

    ज्वालामुखी स्थलाकृतियाँ (Valcanic Landforms)

    ज्वालामुखी के लावा के निकलकर ठंडा होने से आग्नेय शैलें बनती हैं। लावा के ठन्डे होने के स्थान के आधार पर इसे वर्गीकृत किया जाता है।

    1. ज्वालामुखी शैल
    2. पातालीय शैल – जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है। जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियाँ बनती हैं। ये आकृतियाँ अंतर्वेधी आकृतियाँ (Intrustive Forms) कहलाती हैं।
    3. पातालीय शैलों के कुछ उदाहरण इस प्रकार से हैं

      • बैथोलिथ (Baitholiths) यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर जमा हो जाये तो यह एक गुम्बद के आकार में विकसिट हो जाता है। इसे बैथोलिथ कहा जाता है।
      • लैकोलिथ (Lacoliths) ये गुम्बदनुमा अंतर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरुपी वाहक नाली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुम्बद से मिलती है। अंतर केवल इतना होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाया जाता है।
      • डाईक जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाये तो एक दीवार की भांति संरचना बनाता है। इस संरचना को डाईक कहते हैं।
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